गुरुवार, 18 अगस्त 2016

सन्तों से बुरी नियत का फल


     श्री गुरुनानक देव जी के सच्चे उपदेशों को सुनकर हर तरफ सच्चाई की धूम मची हुई थी। खलकत उनके दर्शन के लिये बड़ी संख्या में आने लगी। जो भी लोग आते सच्चाई का उपदेश पाकर मालामाल हो जाते और खुशी खुशी घर को लौटते। जो भी वाणियां श्री गुरु नानक साहिब के मुख से निकलती थीं, वह अधिकतर लोगों की जीभ पर रहने लगीं और आज तक लोग उनकी वाणी को बड़े आदरपूर्वक पढ़ते और अमल में लाते हैं।
     एक और लखपति अहलकार वहाँ रहता था। वह भी अपनी दौलत से घमण्ड में किसी को कुछ नहीं समझता था। उसने जब गुरु जी की सच्चाई भरी वाणियाँ लोगों की ज़बान से सुनी, तो सोचने लगा कि यह नानक कौन शख्स है, जिसका नाम हर छोटे बड़े की ज़बान पर रहता है और हर जगह जिसका इतना आदर सत्कार हो रहा है। हिन्दु-मुसलमान सभी क्यों इस साधारण से फकीर के पीछे दीवाने हो रहे हैं? ये विचार थे, जिन्होने उस लखपति अहलकार को भड़का दिया। उसने सोचा कि इस नानक को गरिफ्तार कर लेना चाहिये। यही बुरी नीयत धारण करके वह घोड़े पर सवार होकर चला। घर से निकला ही था कि घोड़ा मचल गया और दोलत्ती झाड़कर उसे अपनी पीठ से नीचे दे पटका। वह उठा और दूसरी बार उछलकर घोड़े की पीठ पर जा बैठा। परन्तु मार्ग में अन्धा हो गया। विवश होकर घोड़े से उतरा और आने जाने वालों को सहायता के लिये पुकारने लगा। जिन्होंने उसकी यह दशा देखी, वे डर के मारे सहम गये। सबने उस अहलकार से यही कहा कि नानक साहिब सत्पुरुष और परम सन्त हैं। उनसे छेड़छाड़ करने का यह कुपरिणाम निकला है। कुछ भले लोगों ने उस मनसबदार को यह सलाह दी कि अब तुम श्री गुरुनानक सहिब जी के पास जाकर उनके पवित्र दर्शन करो और अपनी बुरी नीयत के लिये उनके चरणों में पड़कर  क्षमा  याचना करो। आशा है कि तुम पर वे अवश्य दयालु होंगे।
     मनसबदार पर इस नसीहत का कुछ प्रभाव पड़ा। चुनांचे वह फिर घोड़े पर सवार होकर श्रीगुरुनानकदेव जी के दर्शन के लिये तैयार हुआ। परन्तु घोड़े ने फिर दोलत्ती झाड़कर नीचे गिरा दिया। तब लोंगों ने कहा कि सन्तों के दर्शन के लिये नम्रता और दीनता धारण करके जाना चाहिये। घोड़े पर सवार होकर जाना अहंकार का सूचक है। यह परामर्श उसे पसन्द आया और पैदल ही गुरु जी के दर्शन को चला। नीयत शुद्ध करके जब चला, तो ज्यों ही उनके निवास-स्थान के निकट पहुँचा कि खुदबखुद ही उसके नेत्र खुल गये। अब यह चमत्कार देखकर उस मनसबदार की श्रद्धा गुरु के चरणों में और भी बढ़ गई। बड़ी श्रद्धा और हार्दिक प्यार से वह उनके चरणों में गिरा और अपने किये हुये अपराध के लिये क्षमा-प्रार्थी हुआ। सन्तों का कथन हैः-
          र्इं  दरगहे - मा  दरगहे - नौमीदी नेस्त।।
          सद बार अगर तौबा शिकस्ती बाज़ आ।।
अर्थः-""ऐ गाफिल जीव! यह हमारी दरगाह निराशा और संशय की दरगाह नहीं है। इस दरगाह में सबका अपराध क्षमा किया जाता है। यदि तू सौ बार भी तौबा तोड़ चुका है, तब भी इस दरगाह में आ जा कि तुझे खाली नहीं लौटाया जायेगा।''
     सन्तों का दरबार क्षमा और बख्शिश का दरबार है। श्री गुरुनानक साहिब उसकी सच्ची श्रद्धा से अति प्रसन्न हुये और दयालुता से पेश आये। सन्त महापुरुष किसी के अपराध को दिल में नहीं रखते, बशर्ते कि अपराधी सच्चे मन से अपनी गलती पर पछताने लगा हो। मनसबदार की भी यही दशा हो रही थी, इसलिये उसका अपराध क्षमा कर दिया गया। गुरु जी ने उसे तीन दिन तक अपना अतिथि बनाकर रखा। उसे सच्चा उपदेश देकर उसके दिल में भरे हुये दौलत के झूठे अभिमान को चूर चूर कर दिया और इसके बदले में मालिक के नाम की सच्ची दौलत से मालामाल कर दिया। सच्ची भक्ति का दान पाकर मनसबदार निहाल हो गया। उसने भी अपने सच्चे गुरु की प्रतिष्ठा में रावी के किनारे एक गाँव आबाद कराया, जिसका नाम करतारपुर है और यह गाँव गुरु के चरणों में भेंट कर दिया।

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