रविवार, 21 अगस्त 2016

ध्यान

सभी महापुरुषों ने एक ही बात कही है- ध्यान,ध्यान और सिर्फ ध्यान
एक झेन फकीर के संबंध में मैने सुना है। एक विश्वविद्यालय का अध्यापक उनसे मिलने गया। उस अध्यापक ने कहा, "मुझे ज्यादा समझाने की ज़रुरत नहीं है, मैं पढ़ा-लिखा आदमी हूँ, शास्त्र से परिचित हूँ, बौद्ध शास्त्रों का ही अध्ययन किया है, उसी में मैं पारंगत हूँ, इसलिए आप मुझे संक्षिप्त भी कहेंगे तो मैं समझ जाऊंगा।' वह फकीर चुप ही बैठा रहा, कुछ भी न बोला एक शब्द भी न बोला, थोड़ी देर चुप्पी रही, फिर उस अध्यापक ने पूछा, "कुछ कहते क्यों नहीं?' उस फकीर ने कहा," मैने कहा, मौन ही सार है, तुम समझे नहीं, चूक गये। तुम्हें भ्रान्ति है कि तुम बुद्धिमान हो। मैं चुप रहा, मेरी चुप्पी से ज्यादा और क्या कहूँ? यही सार है सारे अऩुभव का। तुुम्हारे पास आँखें होतीं तो तुम देख लेते यह प्रज्जवलित शांति, यह जलता हुआ भीतर का दीया।' अध्यापक ने कहा, आप ठीक कहते हैं, इतनी गहरी मेरी समझ नहीं है। एकाध-दो शब्दों का उपयोग करेंगे तो चलेगा, फिर से कहें।' तो फकीर कुछ बोला नहीं, रेत पर बैठा था, अंगुली से रेत पर लिख दिया-ध्यान। अध्यापक ने कहा, "इतने से भी काम नहीं चलेगा, कुछ थोड़ा और कहें, फिर बोलते क्यों नहीं हैं?' रेत पर लिखने की क्या ज़रुरत है?' उस फकीर ने कहा, "बोलने से यहां की शांति भंग होगी, लिखने से भंग नहीं होती, इसलिए रेत पर लिख दिया है।' उस अध्यापक ने कहा, "थोड़ा और कहे, इतने से काम न चलेगा।' तो उसने दोबारा ध्यान लिख दिया, अध्यापक ने और जोर मारा तो उसने तीसरी बार ध्यान लिख दिया। अध्यापक तो पगला गया, उसने कहा, "आप होश में हैं? आप वही-वही शब्द दोहराए जा रहे हैं।' झेन फकीर हँसने लगा, उसने कहा," सारे बुद्धों (महापुरुषों) ने बस एक ही शब्द दोहराया है, सारे जीवन एक ही शब्द दोहराया है, कितने ही शब्दों का उपयोग किया हो, लेकिन दोहराया एक ही शब्द है-ध्यान-ध्यान-ध्यान।'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें