शनिवार, 10 सितंबर 2016

सन्त एकनाथ जी

सन्त एकनाथ जी पैठन(दक्षिण भारत का एक नगर) के निवासी थे।अति शान्त और मृदुल स्वभाव। क्षमा, दया और करुणा से ओतप्रोत जीवन। अक्रोध तो मानो एकनाथ जी का स्वरूप ही था। उनके मुख पर सदैव शान्ति विराजमान रहती। किन्तु संसार में यदि अक्रोध है तो क्रोध भी है, शान्ति है तो अशान्ति भी है, दया और करुणा है तो क्रूरता भी है तथा सन्त हैं तो असन्त भी हैं।
     सन्त एकनाथ जी नित्यप्रति प्रातःकाल गोदावरी नदी पर स्नान करने जाया करते थे। मार्ग में एक सराय पड़ती थी जिसमें एक पठान रहता था। वह दुष्ट स्वभाव का था। वह आते-जाते व्यक्तियों को बहुत तंग किया करता था। एकनाथ जी जब नदी से स्नान करके लौटते तो वह पठान उनके ऊपर कुल्ला कर देता। एकनाथ जी वापिस लौट जाते और पुनः नदी पर स्नान करते। जब वे पुनः स्नान करके वापिस आते, वह पठान फिर उनपर कुल्ला कर देता। किसी किसी दिन तो उन्हें चार-पांच बार स्नान करना पड़ता,परन्तु एकनाथ जी तनिक भी क्रुद्ध न होते। उनके मुखमंडल पर सदैव की ही भाँति शान्ति शोभायमान रहती। वह पठान सोचता, यह कैसा मनुष्य है जो तनिक भी क्रोध नहीं करता। एक दिवस-आज मैं इऩ्हें क्रोधित करके ही रहूँगा-यह पठान की जिद थी। अथवा यूँ कहा जाये कि नित्यप्रति सन्तों के दर्शन करते-करते उसके पुण्य संस्कार उदय होने तथा सुधरने का समय आ गया था तो अनुचित न होगा। उस दिन एकनाथ जी बार-बार स्नान करके आते और वह पठान बार-बार उनके ऊपर कुल्ला कर देता। सन्त एकनाथ जी को उस दिन एक सौआठ बार स्नान करना पड़ा, परन्तु क्या मजाल जो उनके चेहरे पर क्रोध की रेखा भी उभरी हो।
     ""आप मुझे क्षमा करें। मैने बहुत पाप किये हैं जो आपको प्रतिदिन कष्ट दिया है।आप वास्तव में ही सच्चे सन्त हैं।''कहते हुये उस पठान ने एकनाथ जी के चरण पकड़ लिये।""अरे-अरे!यह क्या करते हैं?आपकी कृपा से मुझे आज एक सौ आठ बार गोदावरी-स्नान का सौभाग्य प्राप्त हुआ।''कहते हुये सन्त एकनाथ जी ने उस पठान को प्रेम से गले लगा लिया। उस दिन से वह पठान पशुता त्याग कर मानव बन गया और सन्तों का आदर-सत्कार करने लगा।

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