शनिवार, 17 सितंबर 2016

करूणा करो जिससे झगड़ा है


बुद्ध एक गंव में रूके हैं और एक आदमी को उन्होने ध्यान की दीक्षा दी है। उससे कहा कि करूणा का पहला सूत्र कि ध्यान के लिए बैठे तो समस्त जगत के प्रति मेरे मन में करूणा का भाव भर जाए, इससे शुरु करना।उसने कहा और सब तो ठीक है, सिर्फ मेरे पड़ोसी को छुड़वा दें, उसके प्रति करूणा करना बहुत मुश्किल है।बहुत दुष्ट हैऔर बहुत सता रखा है उसने और मुकदमा भी चल रहा है।और झगड़ा-झांसा भी हैऔर गुंडे भी उसने इकट्ठे लगा रखे हैं, मुझे भी लगाने पड़े हैं। सारे जगत के प्रति करूणा में मुझे ज़रा भी दिक्कत नहीं है,यह पड़ोसी भर को छोड़ दें, क्या इतने से कोई दिक्कत आएगी ध्यान में? सिर्फ एक पड़ोसी।
     बुद्ध ने कहा, सारे जगत को छोड़,सिर्फ एक पड़ोसी पर ही करूणा करना काफी होगा। क्योंकि दोष जो भरा है वह उस पड़ोसी के लिए है, सारे जगत से कोई लेना-देना नहीं है।करूणा,वह दोष का परिहार करेगी जो हमारे चित्त में इकट्ठे होते हैं।दूसरा बुद्ध ने कहा, मैत्री। समस्त जगत के प्रति मैत्री का भाव। समस्त जगत में आदमी ही नहीं,सब कुछ।तीसरा बुद्ध ने कहा है,मुदिता।प्रफुल्लता का भाव,प्रसन्नता का भाव।ध्यान रखना कि जब हम प्रफुल्लित होते हैं तब जगत के प्रति हमारे भीतर से कोई भी दोष नहीं बहता।और जब हम दुःखी होते हैं,हम सारे जगत को दुःखी करने का आयोजन सोचने लगते हैं। दुःखी आदमी सारे जगत को दुःखी देखना चहता है। उससे ही उसको सुख मिलता है। और कोई सुख नहीं है उनका। जब तक आप उनसे ज्यादा दुःखी न हों, तब तक वह सुखी नहीं हो पाते। दुःखी आदमी को जब चारों तरफ दुःख दिखायी पड़ता है, तब वह बड़ी निश्चिन्तता से बैठ जाता है।बुद्ध ने कहा है तीसरा,मुदिता। प्रफुल्लता से बैठना। ह्मदय को प्रफुल्लता से भरना। और चौथा बुद्ध ने कहा है, उपेक्षा। कुछ भी हो जाए-अच्छा हो कि बुरा,फल मिले कि न मिले, ध्यान लगे कि न लगे, ईश्वर से मिलन हो कि न हो,असफलता आए, सफलता आए,श्रेय,अश्रेय कुछ भी हो, उपेक्षा रखना। दोनों में समतुल रहना। दोनों में चुनाव मत करना। ये चार को बुद्ध ने कहा है। इनसे ह्मदय के दोष अलग हो जाएंगे। ध्यान इनके बाद सुगम बात होगी, सहज बात होगी।

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