गुरुवार, 22 सितंबर 2016

विदूषक को छड़ी दी


   सारा जीवन इस नश्वर शरीर के बनाव-ऋंगार,पालन पोषण में गुज़ार देना कहाँ की बुद्धिमानी है। संत महापुरुष विभिन्न उदाहरण देकर अपनी बात को सपष्ट करते हैं।
     एक बार किसी राजा ने अपने मन बहलाव के लिये किसी विदुषक (जोकर) को नियुक्त किया। राजा ने मज़ाक करते हुये एक छड़ी उस विदुषक को दे दी और उससे कहा कि इस छड़ी को उस व्यक्ति को देना जो तुमसे भी अधिक मूर्ख हो।चार पाँच दिन के उपरांत विदुषक के हाथ में छड़ी को देखकर राजा ने पूछा कि उसने इस छड़ी को किसी व्यक्ति को क्यों नहीं दिया।तब विदुषक ने उत्तर दिया कि उसे कोई मूर्ख ही नहीं मिला। इस प्रकार कुछ दिनों के समय के अन्तराल पर राजा ने विदुषक से तीन चार बार यही प्रश्न पूछा।विदुषक का भी यही उत्तर था कि उसे कोई मूर्ख नहीं मिला। इस प्रकार छः माह बीत गये।
    राजा बहुत बीमार हो गया।अनेक उपाय करने के उपरान्त भी राजा स्वस्थ न हुआ। तब राजा को ऐसा अनुभव होने लगा कि उसका अंत समय निकट आ गया है।मृत्यु का विचार मन में आने से राजा का दुःख औरभी बढ़ गया।तभी विदूषक राजा का हाल पूछने के लिये उसके पास आया। राजा ने उसको कहा कि अब तो चलने की तैयारी है। विदूषक राजा की यह बात सुनकर बहुत हैरान हुआ। विदूषक ने पूछा कि कहाँ जाना है? राजा ने उत्तर दिया वह उस स्थान के बारे में अनभिज्ञ है जहाँ उसे जाना है। फिर विदुषक ने कहा कि पहले तो यात्रा पर जाने से पूर्व सारा सामान बाँध लिया जाता था अब साथ में क्या ले जाने का इरादा
है? क्या साथ ले जाने वाला सामान जैसे धन, कपड़े,वस्तुएँ आदि एकत्र कर बाँध ली गई हैं? तब राजा ने कहा कि जहाँ जाना है,वहाँ कुछ भी साथ नहीं जायेगा।तब विदुषक ने फिर प्रश्न किया कि कब जाना है और कैसे जाना है। परन्तु राजा का तो बार बार यही उत्तर था कि उसे कुछ भी नहीं मालूम कि कब जाना हैऔर कैसे जाना है।फिर विदुषक ने राजा से कहा कि किसी नौकर अथवा सम्बन्धी को साथ ले जायें जो यात्रा में आपकी सेवा कर सके।राजा ने उत्तर दिया कि जहाँ उसे जाना वहाँ कोई भी साथ नहीं जा सकता। विदूषक ने राजा की सब बातें सुनने पर वह छड़ी राजा के हाथ में थमा दी।
     उस छड़ी को देखकर राजा को आश्चर्य होने साथ साथ क्रोध भी आता है और विदूषक से पूछा यह छड़ी तो मैने किसी मूर्ख को देने के लिये दी थी।विदुषक अत्यन्त बुद्धिमान थाऔर सन्तों की संगत उसे प्राप्त थी,अतः उसने राजा से कहा-कि उससे बड़ा मूर्ख और कौन होगा जिसने अपनी यात्रा का पहले से ही प्रबन्ध नहीं किया हुआ है अर्थात मृत्यु के समय जब धन-सम्पत्ति,नौकर,सम्बन्धीऔर यहाँ तक कि अपना शरीर भी साथ नहीं जायेगा तोअपना सम्पूर्ण जीवन शरीर व शारीरिक सम्बन्धों के लिये व्यर्थ गँवा देना कहां की बुद्धिमानी है? ऐसा सोच कर ही मैने आपको छड़ी दी है।

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