रविवार, 25 सितंबर 2016

प्रारब्ध की गठरी सबके सिर पर है


          एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु।
          इकु संसारी इकु भण्डारी इकु लाए दीवाणु।।
कुल मालिक ने संसार की रचना करते समय तीन शक्तियां उत्पन्न की और उन तीनों को पृथक-पृथक कर्तव्य सौंप दिये। ये तीन शक्तियां जो जगत का प्रबन्ध चला रही हैं,कौन सी हैं? और कौन से कर्तव्य उनको सौंपे गये हैं?एक कार्य है संसार के प्राणियों की उत्पत्ति करना, यह कार्य प्रकृति की ओर से ब्राहृा जी को सौंपा गया। दूसरा कार्य है संसार का पालन-पोषण करना,इस कार्य के लिये विष्णुमहाराज नियुक्त किये गये कि वे ब्राहृा जी द्वारा उत्पन्न जीवों को भोजन उपलब्ध करायें।अब तीसरा कार्य रह जाता है,प्राणियों के संहार करने का अर्थात संसार के जीवों का समय आने पर नाश करना,और यह कार्य है शिवजी महाराजका। अन्य शब्दों में यूँ समझ लीजिये कि ब्राहृा जी घड़े घड़ते हैं,विष्णु महाराज भरते जाते हैं और शिवजी समय आने पर अथवा पुराने होने
पर घड़े तोड़ते जाते हैं।ये तीनों शक्तियाँ अपने अपने कार्य में संलग्न हैं और यह क्रम निरन्तर चल रहा है। उत्पन्न करने का, पालन पोषण करने का अथवा संहार करने का कार्य मनुष्य के ज़िम्मे नहीं,अपितु इन शक्तियों के ज़िम्मे है। मनुष्य यदि इन तीनों देवताओं के कर्तव्यों का उतरदायित्व अपने ऊपर ले ले और कहे कि मैं ही उत्पन्न करने वाला और पालन करने वाला हूँ तो यह उसका अज्ञानता है इस अज्ञानता में पड़ कर मनुष्य व्यर्थ ही अपने आपको दुःखी बना लेता है। वह कहता है कि यदि मैं धनोपार्जन न करूँ तो मेरा परिवार भूखा मर जायेगा।इसका अर्थ कोई यह न समझ ले कि महापुरुष धनोपार्जन करने से अथवा परिवार के पालन-पोषण से रोकते हैं। ऐसा कदापि नहीं है। अपितु सन्तों का तो यह कथन है कि निस्सन्देह आप संसार में रहकर कार्य-व्यवहार करो,परिवार का पालन-पोषण करो धनोपार्जन करो,क्योंकि पुरुषार्थ करना मनुष्य का कर्तव्य है,परन्तु मन में यह विचारधारा होनी चाहिये कि मै कार्य-व्यवहार अवश्य कर रहा हूं,परन्तु पालन-पोषण का उत्तरदायित्व तो प्रकृति केहाथ में है।यदि मैं कल को इस संसार से  चला जाऊँ तब भी परिवार का पालन पोषण तो होता ही रहेगा। सतपुरुषों का कथन  हैः-
          गमें रोज़ी मखुर बरहम मज़न औराके-दफ्तर रा।।
          के पेश अज़ तिफल एज़्द पुर कुनद पिस्ताने-मादिर रा।।
अर्थः-ऐ मनुष्य!अपनीआजीविका की चिन्ता मत कर,न ही इसके लिये अपने भाग्य के कार्यालय की जांच-पड़ताल कर क्योंकि प्राकृतिक नियम है कि बच्चे के जन्म लेने से पूर्व ही मालिक माता के स्तनों को बच्चे के लिये दूध से भर देता है।
     इतिहास बतलाता है कि श्री कबीर साहिब जी के घर साधु-सन्त आया जाया करते थे।श्री कबीर साहिब जी कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। इस धन्धे से जो कुछ प्राप्त होता,उससे परिवार का पालन-पोषण भी करते थेऔर साधु-सेवा भी करते थे। साधु-सेवा में अधिक रुचि होने के कारण श्री कबीर साहिब जी को कपड़ा बुनने के लिये बहुत कम समय मिलता था, इसलिये उनकी माता को बहुत चिंता होती थी। एक बार श्री कबीर साहिब जी की माता रह न सकी और रोने लगी। इसका वर्णन गुरुबाणी में इस प्रकार है-
मुसि मुसि रोवै कबीर की माई। ए बारिक कैसे जीवहि रघुराई।।
तनना बुनना सभु तजिओ है कबीर। हरि का नामु लिखि लिओ सरीर।।
माता के इसप्रकार के वचन सुनकर श्रीकबीर साहिब जी ने उत्तर दिया।
ओछी मति मेरी जाति जुलाहा। हरि का नामु लहिओ मैं लाहा।।
कहत कबीर सुनहु मेरी माई। हमरा इनका दाता एकु रघुराई।।
     माता का यह कथन था कि साधु-सन्तों की सेवा में लगकर तुमने ताना बुनना भी त्याग दिया है। तुम तो हर समय मालिक का नाम जपते रहते हो, फिर भला परिवार का पालन-पोषण कौन करेगा? उत्तर में श्री कबीर साहिब जी फरमाते हैं कि हे माता। मेरी बुद्धि तो ओछी है क्योंकि मैं जाति का जुलाहा हूँ,किन्तु मैने मालिक के नाम का जो लाभ कमाया है, उसे मैं ही जानता हूँ, अन्य कोई नहीं जान सकता। हे माता!मेरा और सबका दाता तथा पालन करने वाला एक भगवान ही है, इसलिये तू क्यों व्यर्थ चिंता करती है।
     कहते हैं एक बार अकाल पड़ गया। उस समय श्री कबीर साहिब जी की लड़की कमाली ने सोचा कि कुछ दिन के लिये मैं अपने पिता के घर चली जाऊँ। यह विचार कर अपने बच्चों को साथ लेकर श्री कबीर साहिब जी के घर की ओर चल पड़ी। घर में प्रवेश करने से पूर्व द्वार पर उसे श्री कबीर साहिब मिल गये। कमाली को देख कर वे हँसने लगे।कमाली ने सोचा कि पिता जी शायद इसलिये हँस रहे हैं कि मैं उन पर बोझ बन कर आ गई हूं। श्री कबीर साहिब जी पूर्ण महापुरुष थे, अतएव कमाली के मनोभाव को जान कर उन्होने ये वचन फरमाये-बेटी! मैं इसलिये नहीं हँसा हूँ कि तू मुझ पर बोझ बन कर आई है, अपितु मैं तो मालिक की रचना को देखकर प्रसन्न हो रहा हूँ कि तुम जितने जीव मेरे घर आये हो, सब के सिर पर प्रारब्ध की गठड़ियाँ बँधी हुई हैं। यहाँ रहकर भी तुम सबने अपनी ही प्रारब्ध लेनी है।

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