गौतम बुद्ध के एक शिष्य पूर्ण ने
सीमाप्रांत में धर्म प्रचार करने की अनुमति मांगी। बुद्ध ने कहा, ‘उस
प्रांत के लोग अत्यंत कठोर तथा क्रूर हैं। वे तुम्हें गाली देंगे।’ पूर्ण
ने कहा, ‘मैं समझूंगा वे भले लोग हैं कि वे मुझे थप्पड़-घूंसे नहीं मारते।’
बुद्ध बोले, ‘यदि वे तुम्हें थप्पड़-घूंसे मारने लगे तो…।’ पूर्ण ने कहा,
‘वे शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे इस कारण मैं उन्हें दयालु मानूंगा।’
इस पर बुद्ध बोले, ‘यदि वे शस्त्र प्रहार करें तो…?’ पूर्ण ने फिर उसी तरह जवाब दिया, ‘अगर वे मुझे मार नहीं देंगे तो मुझे इसमें उनकी कृपा ही दिखेगी।’ बुद्ध बोले, ‘ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि वे तुम्हारा वध नहीं करेंगे।’ पूर्ण ने उत्तर दिया, ‘यह शरीर रोगों का घर है। आत्मघात पाप है इसलिए जीवन धारण करना पड़ता है। मुझे मारकर वे मेरे ऊपर कृपा ही करेंगे।’ बुद्ध प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे धर्मप्रचार की अनुमति देते हुए कहा, ‘जो किसी दशा में दोष नहीं देखता वही सच्चा साधु है।
इस पर बुद्ध बोले, ‘यदि वे शस्त्र प्रहार करें तो…?’ पूर्ण ने फिर उसी तरह जवाब दिया, ‘अगर वे मुझे मार नहीं देंगे तो मुझे इसमें उनकी कृपा ही दिखेगी।’ बुद्ध बोले, ‘ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि वे तुम्हारा वध नहीं करेंगे।’ पूर्ण ने उत्तर दिया, ‘यह शरीर रोगों का घर है। आत्मघात पाप है इसलिए जीवन धारण करना पड़ता है। मुझे मारकर वे मेरे ऊपर कृपा ही करेंगे।’ बुद्ध प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे धर्मप्रचार की अनुमति देते हुए कहा, ‘जो किसी दशा में दोष नहीं देखता वही सच्चा साधु है।
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