रविवार, 16 अक्तूबर 2016

चात्रिक स्वांति बूंद ही पीता है


    चात्रिक अथवा पपीहा केवल स्वांति नक्षत्र का ही जल पीता है,अन्य कोई भी जल ग्रहण नहीं करता।स्वातिं जल कीआशा में वह सदाआकाश की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है कि कब स्वांति-बूँद ऊपर से गिरे और वह अपनी प्यास बुझाए। इसी प्रतीक्षा में वह सदा पीउ- पीउ की रट लगाये रहता है। स्वांति ही उसका इष्ट है तथा केवल उसी का आधार और विश्वास वह मन मे रखता है।
     एक बार श्री रामकृष्ण परमहँस जी के चरणों में नरेन्द्र(स्वामी विवेक आनन्द जी)ने निवेदन किया-आप तो कहते हैं कि पपीहा स्वाँति-जल के अतिरिक्त अन्य कोई जल नहीं पीता, परन्तु मैने तो आज अपनी आँखों से उसे तालाब का जल पीते देखा है।श्रीरामकृष्ण जी ने फरमाया-नरेन्द्र!यह तुम क्या कहते हो?पपीहा और स्वांति के अतिरिक्तअन्य जल पिए, यह कदापि नहीं हो सकता।असम्भव!नरेन्द्र ने विनय की-मैने स्वयं उसे तालाब का पानी पीते देखा है। वह पी पी की रट लगाये था। श्री रामकृष्ण परमहँस गम्भीर हो गए और बोले-नरेन्द्र!क्या तुम वह चिड़िया मुझे दिखला सकते हो? नरेन्द्र ने कहा-अवश्य गुरुदेव!अभी चलिये। नरेन्द्र उन्हेंनगर के बाहर एक तालाब के किनारे ले गएऔर एक चिड़िया की ओर संकेत करते हुए कहा-वह देखिये,वह रहा पपीहा। श्री रामकृष्ण परमहंस उस चिड़िया को देखकर बड़ी ज़ोर से हँस पड़े और फरमाया-नरेन्द्र!इसी को तुम पपीहा बतला रहे हो?अरे!यह पपीहा नहीं और नाही यह पीउ पीउ कर रहा है।यह तो टिटिहर है जो टी-टी बोल रहा है।पपीहा और अन्य जल पिए, यह हो ही नहीं सकता। वह तो किसी अन्य जल की आस रखता ही नहीं। इसी प्रकार ऐ जिज्ञासु!चात्रिक अथवा पपीहे से शिक्षा ग्रहण कर तुम भी अपनी सुरति सदैव इष्टदेव के चरणों में लगाये रखो और संसार केअन्य सभी आसरे त्यागकर केवल इष्टदेव काआधार तथा विश्वास मन में रखो।

    

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