बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

बेढ़ा दीन्हो खेत को, बेढ़ा खेतहि खाय।।


          तीन लोक संशय पड़ा काहि कहूँ समुझाय।।
खेत के चारों तरफ बाड़ लगाते हैं-खेत की रक्षा के लिए। जीवन में बाड़ खेत को खा जाती है और लोगों को पता नहीं चलता,समझो। जीवन को चलाना है तो रोटी की ज़रूरत है,एक तरफ की सुरक्षाभी चाहिए,सुविधा भी चाहिए, बिलकुल आवश्यक है। लेकिन फिर एक आदमी जीवन भर मकान बनाने में लगा रहता है,मकान को ही बड़ा करने मेंलगा रहता है। वह वक्त ही नहींआता,जब वह रहता। मकान में निवास करता,वह समय ही नहींआ पाता।रोटी चाहिए,कपड़े चाहिए,तो थोड़ा धन तो चाहिए ही होगा। लेकिन फिर एकआदमी धन राशि लाने में जुड़ जाता है,फिर वह यह भूल ही जाता है कि धन एक बाढ़ थी-धन खेत हो गई,बाढ़ खेत को खा गई।धन की एक ज़रूरत है।ज़रूरत की एक सीमा है। आवश्यकता असीम नहीं है। वासना असीम है। आवश्यकताएं तो बड़ी-छोटी हैं-रोटी चाहिए,पानी चाहिए,कपड़ा चाहिए।अगर दुनियाँ में सिर्फ आवश्यकताएं हो तो एक भी आदमी भूखा न हो, एक भी आदमी दीन न हो,दरिद्र न हो। क्योंकि आवश्यकताएं तो सीमित हैं। पशु-पक्षियों की पूरी हो जाती हैं। कैसा आश्चर्य कि आदमी की पूरी नहीं होतीं। वृक्ष अपनी आवश्यकता पूरी कर लेते हैं,जिनके पास पैर भी नहीं हैं कहीं जाने को।एक ही जगह खड़े रहते हैंऔरआवश्यकताएं पूरी हो जाती है। पशु-पक्षी जिनके पास बड़ी बुद्धि,विश्वविद्यालय का शिक्षण नहीं, वे भी पूरी कर लेते हैं अपनी आवश्यकताओं को।आदमीआवश्यकताओं को क्योंं पूरा नहीं कर पाता?
लगता है कहीं कुछ भूल हो गई। आवश्यकताएं तो ठीक हैं, वासना खतरनाक है। फर्क क्या है?आवश्यकता तो बाड़ है,वासना, पूरा खेत हो गई। तुम्हारी ज़रूरतें तो पूरा हो सकती है, लेकिन तुम्हारी कामनाएं पूरी नहीं हो सकतीं। ज़रूरत पर रुक जाना समझदारी है। कामना में बढ़ते जाना पागलपन है। फिर उसका कोई अंत नहीं। देखो लोगों की तरफ।
    मैं एक आदमी को जानता हूं,जिसके सात मकान हैं।और कई हज़ार रूपए महीने का किराया आता है। लेकिन उस आदमी ने एक छोटी-सी खोली ले ली है किराए की,उसमें रहता है। एक साइकिल है उस आदमी के पासऔर वह है।साइकिल का उपयोग वह किराए की वसूली के लिए करता है। खोली में रहता है,खाना होटल में खा लेता है। उस आदमी के एक बंगले में मुझे रहने का मौका मिला। तो हर महीने एक तारीख को वह आ के अपना किराया ले जाता। जो मित्र उसके बंगले में रहते थे, जिनका मैं मेहमान था,उनसे मैने पूछा कि यह आदमी कौन है? वे हँसने लगे, उन्होने कहा,यह मकान मालिक है,उसके कपड़ों में छेद है।साइकिल भी न मालूम पहला संस्करण है। वह दूर सेआता है तो पता चलता है, खड़बड़-खड़बड़ चला आ रहा है। उसे देख के कोई भी नहीं कह सकता कि इस आदमी के पास सात मकन हैं।सात मकानों की कीमत अँदाजन कोई बीस लाख  रुपया है।हज़ारों रूपए महीने वह किराया वसूल करता है,लेकिन अपने लिए वह एक खोली में रहता है पांच रुपए महीने किराए की। इस आदमी के जीवन को बाड़ खा गई।

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