शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

गेहूँ की जगह जौं बोये


          अज़ मकाफाते अमल गाफिल  मशौ।।
          गन्दुम अज़ गन्दुम बरोयद जौ ज़ जौ।।
     अर्थः-ऐ जीव!अपने किये हुये कर्मों के फलसे असावधान मत रह, क्योंकि यह बात तो सर्वविदित है कि गेहूँ बोने से गेहूँ और जौ बोने से जौं की फसल ही प्राप्त होगी। इस विषय में लुकमान की कथा अत्यन्त रोचक एवं शिक्षाप्रद है। लुकमान के समय में दासप्रथा का ज़ोर था और लुकमान को भी बाल्यकाल में गुलाम की तरह एक धनाढय ज़मींदार ने खरीदा था। उसके पासऔर भी बहुत से गुलाम थे।लुकमान का मालिक अत्यन्त निष्ठुर एवं निर्दयी था और बात बात पर गुलामों को कोड़े से पीटता औरअपशब्द कहता था। उसके ह्मदय में दया नाम की कोई वस्तु न थी। उसका धर्म तो केवल धन था, जिसके मद में चूर होकर वह हर समय पापाचार में रहता। लुकमान को भी अन्य गुलामों की तरह प्रायः मालिक के कोपभाजन बनना पड़ता, परन्तु मार खाकर अन्य गुलामों की तरह रोने-चिल्लाने की अपेक्षा वह सदैव इस बात पर विचार करता कि मालिक को कैसे इसअऩुचित मार्ग से हटाया जाये।अन्त में उसे एकयुक्ति सूझी।यद्यपि इस कार्य में उसे यहभय भी था कि यदि पासा सीधा न पड़ा तो मालिक उसकी चमड़ी उधेड़कर रख देगा,परन्तु उसनेअपने प्राणों की परवाह न कर इस युक्ति को आज़माने का पूरी तरह निश्चय कर लिया।
     लुकमान चूँकि बाल्यावस्था से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि था,अतएव उसके मालिक ने उसे कुछ नौकरों के ऊपर काम करवाने के लिये नियुक्त कर रखा थाऔर कुछ खेत भी उसके अधिकार में दे रखे थे।जब
गेहूँ बोने का समय आया,तो लुकमान के मालिक ने उसे बुलाया और गेहूँ का बीज देते हुए कहा कि इसे खेतों में बो दो। लुकमान अपने अधीनस्थ गुलामों को साथ लेकर खेतों पर गया और उन्हें जौ का बीज देते हुये बोला कि इन्हें खेतों में बो दो। अधीनस्थ गुलामों ने लुकमान से कहा-यह तुम क्या कर रहे हो?गेहूँ के स्थान पर जौ का बीज डलवा रहे हो? यदि मालिक को पता चल गया तो वह तुम्हारी खाल खिंचवा देगा। किन्तु लुकमान ने उनकी बातों की ओर ध्यान न देते हुये कहा कि जैसा मैं कहता हूँ, वैसा ही करो। अन्य गुलामों द्वारा अनेक बार रोकने पर भी जब लुकमान ने वही बात कही, तो उन्होने खेत में जौ बो दिये, परिणाम स्वरूप कुछ ही दिनों में खेतों में जौ के पौधे उग आये।
     धीरे-धीरे यह बात मालिक के कानों तक जा पहुँची कि लुकमान ने खेतों में गेहूँ के स्थान पर जौं का बीज डलवाया है। उसने खेत पर जाकर निरीक्षण किया, तो बात को सत्य पाया। यह देखकर उसके क्रोध की सीमा न रही। क्रोध के मारे उसकीआँखों से आग बरसने लगी।उसने लुकमान को बुलवाया। लुकमान अत्यन्त धैर्यपूर्वक आकर मालिक के सामने खड़ा हो गया।उसके मालिक ने क्रोधावेशमें उससे पूछा-लुकमान! हमने तुम्हें खेतों में गेहूँ बोने को कहा था, क्या तुमने हमारे आदेश का पालन किया? लुकमान ने शान्तिपूर्वक कहा-जी हाँ महाशय! कुछ ही दिनों में गेहूँ की फसल तैयार हो जायेगी। मालिक ने कहा-किन्तु हम तो यह देख रहे हैं कि खेतों में गेहूं के स्थान पर जौ के पौधे उगे हैं। और नौकर भी यही कहते हैं कि तुमने गेहूँ के स्थानपर जौ का बीज डलवाया है।लुकमान वैसे ही शान्त बना रहा और बोला-महाशय! मैने यद्यपि बीज जौं का डलवाया है, परन्तु फसल हम गेहूँ की ही काटेंगे। ये शब्द सुनते ही मालिक का क्रोध सीमा पार कर गया। उसने कोड़ा उठाते हुए कहा-मूर्ख!जब बीज जौं का डाला गया है तो फसल भी तो जौ की मिलेगी। जौं का बीज डालकर गेहूँ की फसल कैसे काटी जायेगी?
     बस,इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में तो था लुकमान। उसने तुरन्त उत्तर दिया-मालिक! जब जौं का बीज बोकर गेहूँ प्राप्त नहीं किया जा सकता, जौ के बदले जौ की फसल ही मिलेगी, तो आप जो दिन-रात पापकर्म करने में रत हैं, उनके फलस्वरूप क्याआप को परलोक में दण्ड नहीं भुगतना पड़ेगा?आप क्या आशा रखते हैं कि ऐसे क्रूर और अन्यायपूर्ण कर्म करने पर धर्मराज के न्यायालय मेंआपके साथअच्छा व्यवहार किया जायेगा?क्या आपसे वहां पाई-पाई और रत्ती-रत्ती का हिसाब न लिया जायेगा? यदि ऐसे अनुचित कर्म करके भी आप परलोक में शुभ फल प्राप्त करने की आशा रखते हैं, तो आप मुझसे भी अधिक नासमझ हैं। लुकमान के ये शब्द तीर की तरह उसके मालिक केअन्तर्मानस में उतरते चले गये। कुछ देर तक तो वह चित्रलिखित-सा खड़ा रहा,फिर बोला-लुकमान! तुम ठीक कहते हो।आज तुमने मेरी आँखों पर पड़ीअज्ञान की पट्टी खोल दी। मैं आज कितनी भूल में था कि पापकर्म करते हुए भी शुभ परिणाम सोचता था, बबूल बोकर द्राक्ष की आशा रखता था।जाओ आज मैंने तुम्हें दासता से मुक्त कर दिया। कहते हैं कि उस दिन के पश्चात उसके स्वभाव में समूल परिवर्तन हो गया। वह प्रभु-भक्त, शुभ कर्मी और नम्रस्वभाव का बन गया और प्रत्येक व्यक्ति के साथ सद- व्यवहार करने लगा।
कथा का अभिप्राय यह कि अशुभ अथवा पापकर्मों का फल अशुभ तथा शुभ कर्मों का फल भी शुभ होता है। आम संसारी लोग पापकर्मों में तो हर समय प्रवृत्त रहते हैं और चाहते यह हैं कि उनके कर्मों का फल उन्हें शुभ मिले, तो यह कैसे सम्भव है?

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