सोमवार, 14 नवंबर 2016

भजन-सुमिरण


    कथा है एक स्त्री बड़ी ही भगवद्भक्तऔर सन्त-सेवी थी,परन्तु उसके पति की वृत्ति हर समय माया और माया के सामान संचित करने तथा खाने-पीने आदि में ही लगी रहती थी। वह स्त्री जब भी पति से भजन-सुमिरण करने के लिये कहती,तो वह सदा हँसकर टाल देता। एक दिन जब उस स्त्री ने भजन सुमिरण के लिए पति पर बहुत ज़ोर दिया,तो वह हँसते हुए बोला, भजन-सुमिरण की अभी इतनी जल्दी क्या है? अब तो यौवन है, खाने-पीने और आनन्द लेने के दिन हैं,वृद्ध होने पर भजन-सुमिरण भी कर लिया जायेगा। क्या तुमने यह शेअर नहीं सुनाः-
         ऐश कर दुनियां में गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहाँ।
          ज़िन्दगानी  है अगर  तो यह जवानी फिर कहाँ।।
स्त्री ने कहा-यदि ऐश करने का यही समय है तो भजन भक्ति करने का समय भी तो यही है-कहा भी हैः-
           जवानी में अदम के वास्ते सामान कर गाफिल।
           मुसाफिर जल्दी उठते हैं जो जाना दूर होता है।।
     वृद्धावस्था में तो वैसे ही शरीर के सब अंग शिथिल हो जाते हैं, उस समय तो अपनेआप को संभालना भी कठिन हो जाता है, भक्ति-भजन उस समय मनुष्य क्या करेगा? इसीलिये परमसन्त श्री कबीर साहिब जी का उपदेश हैः-
   जब लगु ज़रा रोगु नहीं आइया, जब लगु कालि ग्रसी नही काइआ।।
   जब लगु विकल भई नही बानी, भजि लेहि रे मन सारिंगपानी।।
   अब न भजसि भजसि कब भाई, आवै अंतु न भजिआ जाई।।
   जो किछु करहि सोई अब सारु, फिरि पछताहु न पावहु पार।।
          आज कहैं मैं काल्ह भजूंगा,काल्ह कहै फिर काल्ह।।
          आज  काल्ह  के करत ही, औसर जासी चाल्ह।।
यह सुनकर उसके पति ने कहा-घबराओ नहीं, मैं अभी इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूँ। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि वृद्ध होने पर किसी तीर्थ-स्थान पर जाकर रहेंगे और दिन-रात प्रभु का भजन-सुमिरण करेंगे। इसके कुछ दिन बाद,एकदिन उस व्यक्ति की तबीयत एकाएक बिगड़ गई। उसे सर्दी लगकर बड़े ज़ोर का बुखार चढ़ गया। डाक्टर बुलाया गया। उसने रोगी की भलीभाँति जाँच करके कहा-मैं दवा भिजवाये देता हूँ। एक-एक घंटे बाद रोगी को दवा पिलाते रहें, शाम को मुझे फिर सूचित करें। दवा आ गई और उस स्त्री ने दवा अलमारी के ऊपर रख दी। कुछ देर बाद उस व्यक्ति ने पत्नी को आवाज़ दी और पूछा-क्या दवा आ गई है? स्त्री ने कहा-हाँ!आ गई है। ज़रा नाश्ता कर लूँ, आपको दवा पिलाती हूँ। यह कहकर वह रसोईघर में चली गई। जब वह काफी देर तक न आई, तो उस व्यक्ति न पुनः उसे बुलाकर कहा-तुमने अभी तक दवा नहीं पिलाई। स्त्री ने कहा-अभी पिलाती हूँ। यह कहकर वह फिर वहाँ से चली गई।उस व्यक्ति ने सोचा-दवाई पिलाने के लिये गिलास आदि लेने गई होगी,अभी आ जाएगी। किन्तु जब काफी समय तक वह वापस न आई,तो उसने फिर उसे आवाज़ दी। उसके आजाने पर उस व्यक्ति ने कहा-क्या दवा नही पिलाओगी?स्त्री ने कहा-दवा तो रखी ही है,अभी पिलाती हूँ। इतनी जल्दी क्यों कर रहै हैं? वह व्यक्ति क्रोध में बोला- मैं बुखार से मर रहा हूँ और तुम कहती हो इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो? क्या मेरे मरने के बाद दवा पिलाओगी?
    स्त्री ने हँसकर कहा-मैं जब भी भजन-सुमिरण के लिए कहती हूँ तो आप सदैव यही उत्तर देते हैं किअभी जल्दी क्या है,मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूँ,फिर आज दवा के लिये आप जल्दी क्यों कर रहै हैं? मैंने तो आपकी इस बात पर,""कि मैं अभी इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूँ'' दृढ़ विश्वास करके यही सोचा कि घर का कामकाज निपटा कर फुर्सत से आपको दवा पिलाऊँगी। किन्तु आज आप ये मरने की बातें क्यों कर रहै हैं? अभी तो आपने बहुत दिन जीना है। फिर आपने मुझसे यह वादा भी कर रखा है कि वृद्धावस्था में तीर्थ-स्थान पर जाकर भजन-सुमिरण करेंगे। क्या आप अपना वह वादा भूल गये?बात उस व्यक्ति की समझ में आ गई। उसने वादा किया कि अब वह भजन-सुमिरण के कार्य में कभी भी टालमटोल नहीं करेगा।डाक्टर की औषधि से वह कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गया और अपना अधिकतर समय भजन-सुमिरण में व्यतीत करने लगा।
   कथा काअभिप्राय यह कि मनुष्य को भजनभक्ति के कार्य में बिल्कुल टालमटोल नहीं करना चाहिये। आम मनुष्य अज्ञान वश भजन भक्ति के वास्तविक कार्य में तो टालमटोल करता है और माया तथा माया के सामान एकत्र करने में दिन-रात व्यस्त रहता है। उसे यह विचार करना चाहिए कि क्या माया तथा माया के सामान आज  तक  किसी के साथगये हैं? यदि नहीं तो फिर इनकी प्राप्ति के यत्न में लगकर अपने दुर्लभ जीवन को नष्ट कर देना कहां की बुद्धिमत्ता है? साथ तो केवल भजन-भक्ति और नाम की कमाई ही जाती है। यह कमाई ही परमात्मा के दरबार में जीव का मुख उज्जवल करती है और उसे आवागमन के चक्र से छुड़ाती है। अतः मनुष्य का कर्तव्य है कि भजन-भक्ति और नाम की कमाई करके मनुष्य जीवन के स्वर्णिमअवसर का पूरा पूरा सदुपयोग करेऔर अपने उद्देश्य की पूर्ति करअपना जन्म सफल एवं सकारथ करे। अपना परलोक भी संवार ले और संसार में भी अपना नाम रोशन करे।

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